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बालकाण्ड : मंगलाचरण




श्रीगणेशाय नमः ॥

श्रीजानकीवल्लभो विजयते



प्रथम सोपान



श्लोक
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1
अक्षरोंअर्थ समूहोंरसोंछन्दों और मंगलों को करने वाली सरस्वतीजी और गणेशजी की मैं वंदना करता हूँ॥1
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धास्वान्त:स्थमीश्वरम् ॥2 
श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँजिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते॥2
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम् ।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3
ज्ञानमयनित्यशंकर रूपी गुरु की मैं वन्दना करता हूँजिनके आश्रित होने से ही टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र वन्दित होता है॥3
सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥4
श्री सीतारामजी के गुणसमूह रूपी पवित्र वन में विहार करने वालेविशुद्ध विज्ञान सम्पन्न कवीश्वर श्री वाल्मीकिजी और कपीश्वर श्री हनुमानजी की मैं वन्दना करता हूँ॥4
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीम् क्लेशहारिणीम् ।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोsहं रामवल्लभाम् ॥5
उत्पत्तिस्थिति (पालनऔर संहार करने वालीक्लेशों को हरने वाली तथा सम्पूर्ण कल्याणों को करने वाली श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री सीताजी को मैंनमस्कार करता हूँ॥5
यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देsहं तमशेषकारणपरं रामाख्यामिशं हरिम् ॥6 
जिनकी माया के वशीभूत सम्पूर्ण विश्वब्रह्मादि देवता और असुर हैंजिनकी सत्ता से रस्सी में सर्प के भ्रम की भाँति यह सारा दृश्य जगत्‌ सत्य ही प्रतीत होता है और जिनके केवल चरण ही भवसागर से तरने की इच्छा वालों के लिए एकमात्र नौका हैंउन समस्त कारणों से पर (सब कारणों के कारण और सबसे श्रेष्ठरामकहलाने वाले भगवान हरि की मैं वंदना करता हूँ॥6
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥7
अनेक पुराणवेद और (तंत्रशास्त्र से सम्मत तथा जो रामायण में वर्णित है और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध श्री रघुनाथजी की कथा को तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख के लिए अत्यन्त मनोहर भाषा रचना में विस्तृत करता है॥7
सोरठा :
जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥1
जिन्हें स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते हैंजो गणों के स्वामी और सुंदर हाथी के मुख वाले हैंवे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों के धाम (श्री गणेशजीमुझ परकृपा करें॥1
मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन॥2
जिनकी कृपा से गूँगा बहुत सुंदर बोलने वाला हो जाता है और लँगड़ा-लूला दुर्गम पहाड़ पर चढ़ जाता हैवे कलियुग के सब पापों को जला डालने वाले दयालु(भगवानमुझ पर द्रवित हों (दया करें)2
नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन॥3
जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण हैंपूर्ण खिले हुए लाल कमल के समान जिनके नेत्र हैं और जो सदा क्षीरसागर पर शयन करते हैंवे भगवान्‌ (नारायणमेरे हृदय में निवास करें॥3
कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन॥4
जिनका कुंद के पुष्प और चन्द्रमा के समान (गौरशरीर हैजो पार्वतीजी के प्रियतम और दया के धाम हैं और जिनका दीनों पर स्नेह हैवे कामदेव का मर्दन करने वाले (शंकरजीमुझ पर कृपा करें॥4

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