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श्री रामचरित्‌ सुनने-गाने की महिमा


दोहा :
राम रूपु भूपति भगति ब्याहु उछाहु अनंदु।
जात सराहत मनहिं मन मुदित गाधिकुलचंदु॥360
गाधिकुल के चन्द्रमा विश्वामित्रजी बड़े हर्ष के साथ श्री रामचन्द्रजी के रूपराजा दशरथजी की भक्ति, (चारों भाइयों केविवाह और (सबकेउत्साह और आनंद को मन ही मन सराहते जाते हैं॥360
चौपाई :
बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी। बहुरि गाधिसुत कथा बखानी॥
सुनि मुनि सुजसु मनहिं मन राऊ। बरनत आपन पुन्य प्रभाऊ॥1
वामदेवजी और रघुकुल के गुरु ज्ञानी वशिष्ठजी ने फिर विश्वामित्रजी की कथा बखानकर कही। मुनि का सुंदर यश सुनकर राजा मन ही मन अपने पुण्यों के प्रभाव का बखान करने लगे॥1
बहुरे लोग रजायसु भयऊ। सुतन्ह समेत नृपति गृहँ गयऊ॥
जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा। सुजसु पुनीत लोक तिहुँ छावा॥2
आज्ञा हुई तब सब लोग (अपने-अपने घरों कोलौटे। राजा दशरथजी भी पुत्रों सहित महल में गए। जहाँ-तहाँ सब श्री रामचन्द्रजी के विवाह की गाथाएँ गा रहे हैं। श्रीरामचन्द्रजी का पवित्र सुयश तीनों लोकों में छा गया॥2
आए ब्याहि रामु घर जब तें। बसइ अनंद अवध सब तब तें॥
प्रभु बिबाहँ जस भयउ उछाहू। सकहिं न बरनि गिरा अहिनाहू॥3
जब से श्री रामचन्द्रजी विवाह करके घर आएतब से सब प्रकार का आनंद अयोध्या में आकर बसने लगा। प्रभु के विवाह में आनंद-उत्साह हुआउसे सरस्वती और सर्पों के राजा शेषजी भी नहीं कह सकते॥3
कबिकुल जीवनु पावन जानी। राम सीय जसु मंगल खानी॥
तेहि ते मैं कछु कहा बखानी। करन पुनीत हेतु निज बानी॥4
श्री सीतारामजी के यश को कविकुल के जीवन को पवित्र करने वाला और मंगलों की खान जानकरइससे मैंने अपनी वाणी को पवित्र करने के लिए कुछ (थोड़ा सा)बखानकर कहा है॥4

छन्द :
निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसीं कह्यो।
रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो॥ 
उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं।
बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं॥
अपनी वाणी को पवित्र करने के लिए तुलसी ने राम का यश कहा है। (नहीं तोश्री रघुनाथजी का चरित्र अपार समुद्र हैकिस कवि ने उसका पार पाया हैजो लोग यज्ञोपवीत और विवाह के मंगलमय उत्सव का वर्णन आदर के साथ सुनकर गावेंगेवे लोग श्री जानकीजी और श्री रामजी की कृपा से सदा सुख पावेंगे।
सोरठा :
सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु॥361
श्री सीताजी और श्री रघुनाथजी के विवाह प्रसंग को जो लोग प्रेमपूर्वक गाएँ-सुनेंगेउनके लिए सदा उत्साह (आनंदही उत्साह हैक्योंकि श्री रामचन्द्रजी का यश मंगल का धाम है॥361

मासपारायणबारहवाँ विश्राम

इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने प्रथमः

 सोपानः समाप्तः। 

कलियुग के सम्पूर्ण पापों को विध्वंस करने वाले श्री रामचरित

 मानस का यह पहला सोपान समाप्त हुआ॥

(
बालकाण्ड समाप्त)

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